From a student - Aditya Goel - The juvenility in a child's thoughts, the full play in his actions, the range of his imagination, compel me to wish if each person could be as innocent, and not let facts get in his way. As puerile as it could get, your imagination will keep you calm in tribulations; and who knows, one of those unconventional dreams might come true.
ख्वाबों के किस्से,
अगर सुबह से होते,
अपने मन की करते,
और मीठे सपने पिरोते.
अपने नामों को लिखना,
गीली मिटटी में होता,
हर रोज़ का गुस्सा,
बस किताबों से होता.
डर वोह मन का,
सिर्फ माँ से ही होता,
हर झूठ, हर रोना,
एक खिलोने में खोता.
रियासत के किस्से,
झूठी कहानियों में होते,
और उनके हिस्से,
हम सोते ही होते.
कभी परेशानियों में,
वोह मुस्कुराना सच्चा होता,
क्या दुनिया वोह होती,
जहां हर कोई बच्चा होता.
- आदित्य गोयल
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